रंडी की मुहब्बत | Hindi Sex Story

शहर जितना बड़ा होता है वहां के लोगो का दिल उतना ही छोटा,ये जुमला मैंने शायद किसी फ़िल्म से सुना था,लेकिन जब मुझे सचमे शहर आना पड़ा तो ये बिल्कुल सत्य लगने लगा,मैं यहां पढ़ने के लिए आया था,मेरा एडमिशन एक इंजीनियरिंग कॉलेज में हुआ था,मैं अपने गांव का एकमात्र इंजीनियर बनने जा रहा था ,और इस उपलब्धि को पाने के लिए मैंने बहुत संघर्ष किया था,एडमिशन तो मुझे मिल गया लेकिन रहने की जगह नही मिल पाई ,होस्टल फूल हो चुके थे,और कई धर्मशाला से निकाला जा चुका था,मैं 6 महीने से यहां वहां भटक रहा था,मेरा कॉलेज एक सरकारी कॉलेज था,और यहां जो भी मेरे दोस्त बने वो मेरे ही तरह गांव से आये हुए लड़के थे,शहर के लड़के तो हमे भाव भी नही देते थे,और लडकिया….
हमारे जैसे लोगो को वो अपने मुह नही लगना चाहती थी,यही बात एक लड़की ने मुझसे कही थी जब मैंने उसके बाजू में बैठने की हिमाकत कर दी ,


खैर मेरे दोस्तो के पास तो खुद का कोई जुगाड़ नही था ,जैसे तैसे सरकारी होस्टल में रह रहे थे,वहां उनकी वो रैकिंग हुआ करती थी जिसे सोचकर रूह कांप जाय लेकिन इसके अलावा उन बेचारों के पास कोई चारा भी नही था,
ऐसे मैंने भी वहां रहने की कोसीसे की लेकिन वार्डन ने मुझे वहां से भी भगा दिया,जैसे तैसे 6 महीने तो गुजर गए लेकिन अब समय था मेरे पहले सेमेस्टर के एग्जाम का और मेरे पास तो रहने को भी जगह नही थी,मा बाप के पास इतना पैसा भी नही था की वो मुझे वो सुविधा दे सके की मैं किसी रूम किराए से लेकर रह सकू,स्कॉलरशिप भी अभी मिली नही थी ,और इतनी मिलने वाली भी नही थी की कुछ जुगाड़ हो सके,पार्ट टाइम एक जॉब कर रखा था,उससे ही मेरे कपड़े और खाने पीने का जुगाड़ हो जाता था,मेरे पास कुछ ज्यादा समान थे नही,पुस्तके लाइब्रेरी से ही ले आता कुछ कापियां जिनमे मेरे नोट्स थे और 2 जोड़े कपड़े जिसे बदल बदल कर पहनता था,

उस दिन जब धर्मशाला से निकाला गया तो मैं लगभग टूट गया,वहां के सभी धर्मशाला वाले मुझे पहचानने लगे थे,कही कोई जगह नही बची थी ,साला हमारा गांव ही अच्छा था वहां आप कही भी रहो कोई टोकने वाला नही होता था,और एक ये शहर था जंहा बस स्टेसन में भी पुलिश वाले बैठने नही देते,मैं अंदर से टूटा हुआ अपना बेग लेकर कॉलेज पहुचा पता चला की एक दिन पहले ही फ्रेशर पार्टी की गई थी ,मुझे इन सबसे क्या मतलब था,मेरे एक दोस्त ने मेरी कैंडिशिन देखी और हाथ में मेरा बेग देखा वो समझ गया की इसे फिर से निकल दिया गया है,एक दो दिन की बात हो तो मैं होस्टल में उसके साथ ही शिफ्ट हो जाता था लेकिन कुछ ही दिनों में एग्जाम थे और मुझे कोई अच्छा सा बसेरा चाहिए था जिसमे कम से कम कुछ दिन मैं टिक सकू…

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वो मुझे चाय पिलाने ले गया उसका नाम प्यारे था,
“यार राहुल कल पार्टी में क्यो नही आया ,साले सीनियरों ने जमकर शराब पिलाई पता है…”
मैं चाय की एक सिप पीता हुआ उसे देखने लगा,और वो मेरी हालात समझ चुका था,
“फिर से बेघर ???”

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